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सोलन रेलवे स्टेशन (Solan Railway Station, Narrow Gauge Railway Station)Solan

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  सोलन रेलवे स्टेशन (Railway Station Solan) सोलन का रेलवे स्टेशन, नैरो गेज कालका - शिमला रेल लाइन के मध्य स्थित स्टेशन है। सोलन रेलवे स्टेशन स्टेशन आकार में भले ही छोटा है, परन्तु यहां पर आरक्षण एवं टिकट काउंटर सुचारू रूप से चलाएं जाते हैं, इसके अलावा यहां पर यात्रियों के ठहरने, कैंटिन, पानी तथा शौचालय की भी उचित व्यवस्था है सोलन रेलवे स्टेशन   यहां पर रेल (टाॅय ट्रेन) की आवाजाही कुछ इस प्रकार है:- सोलन रेलवे समय सारणी

बेज़ा रियासत (Beja Princely State), Solan

            बेजा रियासत (Beja Princely State)         बेजा  रियासत ( सोलन ) लगभग 7 से 8 किमी. में फैली रियासत थी। यह रियासय कुठाड़ के दक्षिण और महलोग के पश्चिम में स्थित थी।       गर्व चंद , बेजा के प्रथम शासक थे। बेजा कईं वर्षो तक कहलूर के अधीन रहा था। लेकिन, जब 1790ई॰ में हिन्दूर ने कहलूर पर आक्रमण किया तब बेजा कहलूर से स्वतंत्र हो गया।               बेजा रियासत के प्रमुख शासक-                                ठाकुर मान चंद (Thakur Maan Chand)                                   मान चंद  बेजा के 24वें शासक थे। ये एक कुशल वैद्य भी थे। इन्होंने गोरखा युद्ध के समय में गोरखा अधिकारियों का उपचार किया था। परंतु एक राजा के रूप में इन्होंने गोरखों के विरुद्ध  युद्ध में अंग्रेजो का साथ दिया था। ठाकुर प्रताप चंद (Thakur Pratap Chand)-                       इनका शासनकाल 1817-1841ई॰ तक था। इन पर अंग्रेज़ सरकार ने 5 बेगारी देने की शर्तें लगाई थी। ठाकुर उदय चंद(Thakur Uday Chand)-                      इनका शासन 1841-1905 ई॰ तक था।इनके पुत्र का नाम ठाकुर पूर्ण चंद था। ठाकुर पूर्ण चंद (Thakur P

मांगल रियासत (Mangal Princely State), Solan

              मांगल रियासत (Mangal Princely State)                   मान्गल रियासत का क्षेत्रफल 20 वर्ग किमी. था। ये रियासत बिलासपुर के उत्तर में सतलुज नदी के किनारें पर स्थित थी।  कहलूर के राजा ने ये  रियासत मारवाड़ के अत्री राजपूत मंगल सिंह को दी थी और उनके नाम पर इस रियासय का नाम मांगल पड़ा। गोरखों ने इस रियासत पर अधिकार कर लिया था, जिस कारण ये कहलूर से स्वतंत्र हो गई थी। गोरखा युद्ध के बाद ये रियासत अंग्रेजी  सरकार ने राणा बाहुदर सिंह को 20 दिसंबर, 1815 ई॰ में सनद द्वारा प्रदान की।            1921 ई॰ में अंगरेज सरकार ने राणा से सभी प्रशासनिक अधिकार छीन लिए और बाघल रियासत के वज़ीर लाला भगवान दास को मांगल रियासत का भी वज़ीर नियुक्त किया।   15 अप्रैल,1948 में मांगल का विलय अर्की में किया जो वर्तमान मे सोलन का एक हिस्सा है।

महलोग रियासत (Mehlog Princely State), Solan

            महलोग रियासत (Mehlog Princely State)  ‌                            महलोग रियासत ( सोलन ) नालागढ़ और कुठाड़ के मध्य स्थित थी। इस रियासत का क्षेत्रफल 70‌ वर्ग किमी. था।  एक उल्लेख के अनुसार महलोग की राजधानी नालागढ़ के समीप 'पट्टा' थी, यह राजधानी 21 पीढ़ियों तक रही थी। महलोग रियासत का संस्थापक आयोध्या से आया हुआ कोई व्यक्ति था, उसके नाम के विषय में कोई निश्चित जानकारी नही है।     महलोग रियासत के कुछ मुख्य शासक           संसार चंद(Sansar Chand)-                   राजा संसार चंद के समय में गोरखों ने महलोग रियासत पर अधिकार कश्र लिया था। उस समय संसार चंद भागकर हिंदूर के राजा रामसरन के पास जाकर रहने लगा। 4 सितंबर, 1815 ई॰ में गोरखा युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने ने सनद द्वरा महलोग की रियासत लौटा दी। रघुनाथ चंद (Raghunath Chand)                          इनका शासनकाल 1880-1902 ई॰ तक का था। इन्होंने कईं भवन, एक अस्पताल और पुलिस विभाग को सुदृढ़ बनाया। दुर्गा चंद (Durga Chand)              इनके शासनकाल में 1909 ई॰ में जमीन का कानूनी बंदोबस्त शुरू किया गया, दो नए स्कूल खो

कुनिहार घाटी (Kunihar Valley), Solan

        कुनिहार घाटी (Kunihar Valley) सोलन की यह घाटी 'कुणी खड्ड'  से शुरू होती है 'तकुरदिया गांव'  तक जाती है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 100 मीटर है। इसी घाटी में कुनिहार रियासत स्थित थी। कुनिहार रियासत की  मुख्य फ़सलें - गेहूं, चना, मक्का, दालें और गन्ना हैं।

गोरखटिल्ला (Gorakhtilla), Solan

            गोरखटिल्ला (Gorakhtilla)   सोलन जिला के बद्दी औद्योगिक नगर से 3 किमी. दूर हरियाणा के जिला पंचकुला में पिंजौर - स्वारघाट राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोरखनाथ गांव में स्थित किला, गोरखटिल्ला के नाम से जाना जाता है।  बताया जाता है कि इस किले के निर्माण का कार्य महाराजा पटियाला ने अपने वज़ीर को सौंपा था।   जनश्रुतियों‌ के अनुसार यह किला बहुत सुंदर हुआ करता था, परन्तु फिर भी महाराजा के वज़ीर ने इसके निर्माण के लिए दिए गए धन का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया था।      और जब किलें का निर्माण पूरा हुआ तब महाराजा ने इसे देखने की इच्छा व्यक्त की। राजा के क्रोध के डर से बचने के लिए उस वजीर ने राजा को जानबूझ़कर दलदल वाला रास्ता बताया जिसे राजा के लिए पार करना संभव नहीं था,अत: राजा ने वह किला उस वजीर को दान में दे दिया।   विख्यात वैद्य विद्यासागर ने इसे उस वजीर से मोल में खरीदा था। इस किले के बारे में कहा जाता है कि जब इसकी पहली मंज़िल के बाद जितना भी निर्माण किया जाता था वह सब ढह जाता था, इसलिए इस किलें को एक मंजिला ही बनाना पड़ा। आज भी इस गांव में किसी का भी 2 मंज़िला मकान नही है।

मलौण किला (Malaun Fort / Kila), Solan

          मलौण किला (Malaun Fort) सोलन और बिलासपुर की सीमा पर जोगिन्द्र सिंह द्वारा बनाया गया मलौण किला है। इस क़िले की हालत जरजर हो चुकी है। अंग्रेज- गोरखा युद्ध में गोरखा सेनानी अमर सिंह थापा इसी किलें में शहीद हुए थे। क़िले में आज भी बहुत सी ऐतिहासिक दर्शनीय वस्तुएँ मौजूद हैं। क़िले के चारों ओर गहरी खाई है, जिस कारण क़िले तक दुश्मन का पहुँचना दुष्कर था। यहां दो तोपें भी हुआ करती थी, गोरखा युद्ध के समय एक गोला बिलासपुर के खेल मैदान में गिरा था।

सुबाथू (Sapatu / Subathu), Solan (HP)

        स्पाटू / सुबाथू (Sapatu/ Subathu) सोलन का  स्पाटू स्थान मुख्यत:  गोरखा लोगों के लिए जाना जाता है। नेपाल से आए गोरखों ने यहां पर अपनी छावनी बनाई थी।  वर्तमान में भी यहां भारतीय सेना की प्रथम गोरखा राइफल्स की  6-1 जी. आर गोरखा बटालियन स्थापित है, जिसकी स्थापना 1 अप्रैल, 2016  में हुई है।  जबकि प्रथम गोरखा राइफल्स की स्थापना 24 अप्रैल,1815 में, भी स्पाटू में ही हुई थी।  सुबाथू, सोलन शहर से 30 किमी. दूरी पर स्थित है।

जटोली शिव मंदिर (Jatoli Shiv Mandir), Solan

               जटोली मंदिर     (Jatoli Temple)     सोलन का जटोली मंदिर हिमाचल प्रदेश का सबसे ऊंचा मंदिर है। यह सोलन - राजगढ़ रोड़ के किनारे सोलन से लगभग 5 किमी. दूर  जटोली नामक स्थान पर है। यह शिव मंदिर है और यहां पर स्फटिक का बना शिवलिंग मंदिर में स्थापित है। जटोली मंदिर दक्षिण भारतीय कला के आधार पर बनाया गया है।           मंदिर में प्रत्येक रविवार को भंडारे का आयोजन किया जाता है तथा शिवरात्रि के दिन खास उत्सव मनाया जाता है। 

कंडाघाट (Information about Kandaghat),Solan (HP)

             कंडाघाट (Kandaghat)      सोलन - शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर सोलन से 15 किमी. दूर कंडाघाट स्थित है। आज़ादी से पहले कंडाघाट पटियाणा रियासत के अधीन आता था, उस समय कंडाघाट निजामत / जिला बनाया गया था। महाराजा  पटियाला ने कंडाघाट के चायल को अपनी राजधानी घोषित किया था। आज भी यहां महाराजा के द्वारा बनवाए गए भवन विद्यमान है।  कालांतर में यह क्षेत्र पैप्सू स्टेट के अधीन आ गया, फिर ये 'कोहीस्तान'  के नाम से जाना गया जिसका अर्थ होता है पहाड़ों का स्थान और इसका केन्द्र बना कण्डाघाट।  वर्तमान में कंडाघाट उप-मंडल में  23 ग्राम पंचायतें और 300 के लगभग गांव आते हैं।   दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड (चायल), भारत का प्रथम मिलट्री स्कूल (चायल‌)  कंडाघाट उपमंडल में ही स्थित है, इसके अलावा प्रदेश का एकमात्र महिला बहु-तकनीकी संस्थान भी यहीं स्थित है।   कंडाघाट उप-मंडल मुख्यालय  करोल पर्वत के आगोश में स्थित है। करोल पर्वत एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान का इतिहास रामायण व महाभारत काल से जुड़ा है। कहते हैं कि जब हनुमान जी संजीवनी पर्वत उठाकर ले जा रहे थे तो

नालागढ़ / हिंदूर / हण्डूर रियासत (Nalagarh / Hindur Princely State, Solan)

हिंदूर / हण्डूर / नालागढ़ रियासत  (Hindur/Nalagarh Princely State)             हिंदूर / नालागढ़ रियासत ( सोलन ) सतलुज की सहायक नदी सिरसा नदी घाटी में स्थित थी। इसका क्षेत्रफल 410 वर्ग किमी. था। इस       रियासत का आधा भाग शिवालिक की पहाड़ियों में तथा आधा भाग समतल भूमि में था।     रियासत की स्थापना 1100 ई॰ में कहलूर के राजा काहन चंद के बड़े पुत्र अजय चंद  ने की थी। हिंदूर का नाम नालागढ़ तब पड़ा जब इसकी राजधानी नालागढ़ में बनाई गई। हिंदूर / नालागढ़ के प्रमुख शासक -             विजय चंद (Vijay Chand)       विजय चंद का शासनकाल 1171 से 1201 ईस्वी तक था। विजय चंद की बाल्यावस्था में उनकी मां ने राज्य का कार्यभार संभाला। इस समय रानी को कुछ विद्रोहियों का सामना करना पड़ा। जब विजय चंद बड़ा हुआ तो उसने विद्रोहियों कनैतो का  दमन किया।    आलम चंद (Alam Chand)-                   आलज्ञ चंद का शासनकाल 1356-1406 ई॰ तक था। आलम चंद के समय मध्य एशिया के मंगोल मुसलमान शासक तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया था। राम चंद(Ram Chand)           राम चंद का शासन काल 1522-1568 ई॰ तक का था। इन्होंने रामगढ़ के किले का

कुनिहार रियासत (Kunihar Princely State, Solan)

            कुनिहार रियासत  (Kunihar Princely State)           कुनिहार रियासत को छोटी विलायत के नाम से भी जाना जाता था। ये शिमला के पश्चिम में स्थित थी। इसका क्षेत्रफल 24 वर्ग किमी.था। कुनिहार रियासत की स्थापना जम्मू के अभोजदेव ने 12 वीं शताब्दी (1154 ई॰) में की थी। रियासत का मुख्यालय हाटकोट था।          ये रियासत क्षेत्रफल, जनसंख्या और आय के नज़रिए से बहुत छोटी थी, इसलिए इसपर आक्रमण का खतरा बना रहता था। कुनिहार रियासत के कुछ प्रमुख  राजा:- ठाकुर अनन्त देव/ आनन्द देव ( Thakur Anant Dev / Anand dev)-                   इनका जन्म 1715 ई॰ में हुआ था। इन्होंने लड़ाई में एक बार कांडड़ा के विरुद्ध कहलूर की सहायता की थी और कांगड़ा के अफगखन सरदार आगर खां  को अपनी तलवार से काट दिया था। ठाकुर मगन देव (Thakur Magan Dev)                     इनका शासनकाल 1795 से 1816 तक का था। इनके शासन काल में गोरखों ने कुनिहार पर अधिकार कर लिया था। यह रियासत इन्हे 4 सितंबर, 1815 में सरकार द्वारा वापिस की गई।  तेग सिंह (Teg Singh)            ठाकुर तेग सिंह के 3 पुत्रों में से ठाकुर हरदेव सिंह उनकी मृत्यु के पश्चात्

कुठाड़ रियासत (Kuthar Princely State, Solan)

                कुठाड़ रियासत (Kuthar Princely State)     कुठाड़ रियासत ( सोलन ) सपाटू के पास कुठाड़ नदी घाटी में स्थित थी। ये रियासत 45 वर्ग किमी. में फैली हुई थी।                         इस रियासत की स्थापना किश्तवाड़ रजौरी से आए सूरत चंद ने 13 वीं शताब्दी के आसपास की थी। आरंभ में सूरतचंद ने कुठाड़ क्षेत्र के रीहणी, धार, शील, धरुथ और फेटा स्थानों को अपने अधीन किया। सूरतचंद से लेकर अंतिम राणा कृष्ण चंद तक कुठाड़ के 49 शासक हुए। कुठाड़ रियासत के प्रमुख शासक - राणा जयचंद(Rana Jai Chand)                           इनका शासन काल 1858 से लेकर 1895 तक का था। जय चंद के समय में इनके  चाचा मियां बहादुर सिंह रियासत के वज़ीर थे, जो एक कुशल अधिकारी थे। राणा कृष्ण चंद (Rana Krishan Chand)                    राणा कृष्ण चंद 19 नवम्बर, 1930 में कुठाड़ के राणा बने। ये कचठाड़ रियासत के अंतिम शासक थे।          15 अप्रैल, 1948 में कुठाड़ रियासत को महासू ज़िले का हिस्सा बनाया गया, जो 1972 ई॰ में सोलन के रूप में विकसित हुआ।        

बाघल रियासत (Baghal Princely State, Solan)

               बाघल रियासत (Baghal Princely State )     बाघल रियासत ( सोलन ) का क्षेत्रफल 198 वर्ग किमी. था। बाघल रियासत सतलुज की सहायक नदी गम्भर की घाटी मे स्थित थी।इस रियासत की सीमाएं बिलासपुर से लेकर शिमला के निकट जतोग तक और कुनिहार से मांगल तक फैली हुई थी।       इस रियासत की स्थापना धरनगिरी से आए पंवर/परमार वंशीय अजयदेव ने की। एसा माना जाता है कि अजयदेव के भाई विजयदेव ने बाघल की पड़ोसी रियासत बघाट की स्थापना की थी। अजयदेव प्रथम शासक था जिसकी स्मृति में वणिया देवी का मंदिर अर्की में,  मुटलू में शिव मंदिर और डुगली व दाड़ला के घोघर में उसके महलों के अवशेष मिले। बाघल के कुछ प्रसिद्ध शासक:- सभाचंद(Sabha Chand) सभाचंद ने 1643ई॰ में अर्की को बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। जगत सिंह (Jagat Singh)  इन्होंने  अपने नाम में 'चंद' को हटाकर 'सिंह' जोड़ा। शिव सरण सिंह (Shiv Saran Singh)   शिव सरण सिंह के समय में कांगड़ा के राजा संसार चंद के पुत्र अनिरुद्ध चंद 1829 ई॰ में अर्की में आकर शरण ली थी। किशन सिंह (Kishan Singh)  इन्हें अर्की‌ का निर्माता समझा जाता है। ध्यान सिंह (Dhyan

बघाट रियासत (Baghat Princely State, Solan)

                   बघाट रियासत (Baghat Princely State) बघाट रियासत ( सोलन ) शिमला से 33 किमी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित थी, इसका विस्तार सोलन व सपाटू तक था।ये रियासत गिरि की  सहायक नदी अश्वनी और सतलुज की सहायक नदी गम्भर के मध्य में स्थित थी। बघाट शब्द की उत्पत्ति बहु+घाट से हुई है, जिसका अर्थ है 'बहुत घाटों वाली भूमि'। इस रियासत का नाम बघाट राणा इन्द्र पाल ने रखा था जोकि इसके हिमाचल मे विलय तक चलता रहा।    बाघल का इतिहास व परंपरा यह कहती है कि उसके और बघाट के संस्थापक अजय देव व विजय देव दोनो भाईं थे, जो दक्षिण के धरनगिरी से आए थे। बड़े भाई अजय देव ने बाघल की नींव रखी और छोटे भाई विजय ने बघाट की।     जबकि,बघाट की स्थापना धरनगिरी से आए पंवर/परमार वंश के राजपूत बसंतपाल द्वारा की गई मानी जाती है।  बसंतपाल धरनगिरी से आकर जहां बसे उन्होंने वहां का नाम 'बसंतपुर' रखा।  जिसे अब 'बासी' के नाम से जाना जाता है, जो सोलन शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर है। बघाट रियासत के कुछ प्रसिद्ध राजा (Famous Rulers of Bhaghat Princely State):-                                           राणा नार

सोलन (District Solan) - History, Geography and Viewable Places etc.

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   ज़िला सोलन (District Solan) भारत (India) के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश का एक प्रसिद्ध ज़िला है सोलन (Solan). आ इए सोलन को ज़रा करीब से जानते हैं- आखिर सोलन नाम पड़ा कैसे?              SOLAN(सोलन)- सोलन,का नामकरण माता शूलनी के नाम पर हुआ है। शूलनी मां सोलन की मुख्य पूज्य देवी (Goddess) है। क्या है  सोलन में प्रसिद्ध (Famous in  District Solan):- Solan City सोलन शहर ( Solan City )                 सोलन ज़िला का  मुख्यालय स्वयं सोलन‌ शहर है, शहर का मुख्य आकर्षण दीयूघाट से चंबा घाट तक और सपरून से जटोली तक का है ,इन चारों स्थानों  (Stations) के भीतर समाया है मुख्य सोलन शहर। शहर के मुख्य स्थान हैं- माल रोड  ( The Mall Road ) पुराना बाज़ार ( Old Market )  मोहन पार्क ( Mohan Park ) चिल्ड्रन पार्क ( Children Park ) जवाहर पार्क ( Jawahar Park) रेलवे स्टेशन  (Railway Station) नया और पुराना बस स्टैंड (New and Old Bus Stand) शूलिनी माता मंदिर (Shoolini Temple)-                        सोलन नगर में मां शूलिनी का विख्यात मंदिर है, और प्रतिवर्ष यहां जून के महीने में मेले का आयोजन क